Thursday 25 November 2010

अलविदा शेखर

अलविदा शेखर. उनका असली नाम आलोक था. ऍफ़ एम् तड़का पर सुने देने वाली पुरकशिश आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गयी . एक तरफ ये खबर सुन रही थी और दूसरी तरफ रेडियो पर ही ये गीत बज रहा था....ये रिश्ता क्या कहलाता है.....जाने ये सवाल था या जवाब..पर दिल से जाने क्या रिश्ता होता है उन आवाजों का जो बिना आमना सामना हुए ही दिल के तार जोड़ लेती है , सुभः से दिल भारी है, और मौसम गम में भीगा भीगा. एक नेक इंसान, बेहतरीन दोस्त चला गया.
रात की ख़ामोशी में दिल के मारे जवान दिलों को दिलासा देने वाला, अपनी शेरो शायरी से लोगों को अपना बनाने वाला . युवा साथी उसके कायल थे. और उन्हें उसकी गैर मौजूदगी पिछले साल ही से खल रही थी, अब भरपाई की कोई गुंजाइश नहीं.
मैं हमेशा उनसे कहती थी कि मैं आपकी श्रोता नहीं हूँ पर आपकी शोहरत से वाकिफ हूँ. बातचीत इसलिए भी थी की मैं उनकी काबिलियत की क़द्र करती थी और उनकी शोहरत की कामना.
कुछ लोग बिना वजह ही अच्छे लगते हैं , बातचीत के सिलसिले के बगैर भी ज़िन्दगी में घुले मिले होते हैं . इसीलिए बेवजह याद भी आते हैं , परसों ही तो बिना बात ही ज़िक्र चला था, नेक इंसानों को साथ ले जाने से पहले उसके चाहने वालों को ईश्वर दस्तक देकर गया हो जैसे. परसों शाम को ऐसे ही नानो सेकेंड के लिए ख्याल आया कि काश नंबर होता तो फोन पर बात कर लेती. सोच कर रह गयी.
सच है, वक़्त रहता नहीं कभी टिककर, इसकी आदत भी आदमी सी है...
शेखर की बातों में हमेशा शरारत झलकती थी, और बेहद संजीदगी भी . चूंकि एक संस्थान में थे तो मिलना जुलना और आना जाना था ही. एक बार एक आयोजन के मौके पर शरारत में कुछ बात कही, मैंने सुनी अनसुनी करने की आदत के मुताबिक मुस्कुराकर टाल दिया. बाद में फोन पर शेखर ने मुआफी मांगी तो मुझे हैरत हुई भला इन बातों का भी कोई बुरा मानता है. ऐसे मौके और भी आये वो आदत के मुताबिक कुछ न कुछ शरारत करते और तुरंत ही अदब से मुआफी. मुझे इस भोलेपन पर और साफगोई पर प्यार ही आता. ये सब लिखते वक़्त आँख नम है क्योंकि आखिरी बार मुलाकात हुई थी तो हमने फूल दिए थे मंगल कामना और खुशहाली की दुआओं के साथ. आज कानपुर में उनकी अर्थी पर फूल चढ़े होंगे..

6 comments:

  1. सच कहा शिप्रा कि कुछ लोग बिना वजह ही अच्छे लगते हैं । दिवंगत आत्मा को हमारा भी नमन ।

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. "बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है"
    मुनव्वर राना - पढवाने के लिए आभार

    "कुछ लोग बिना वजह ही अच्छे लगते हैं , बातचीत के सिलसिले के बगैर भी ज़िन्दगी में घुले मिले होते हैं. इसीलिए बेवजह याद भी आते हैं, ....
    सच है, वक़्त रहता नहीं कभी टिककर, इसकी आदत भी आदमी सी है..."

    सादर

    ReplyDelete
  4. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  6. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
    -----------------------------------------
    जो ब्लॉगर अपने अपने ब्लॉग पर पाठकों की टिप्पणियां चाहते हैं, वे वर्ड वेरीफिकेशन हटा देते हैं!
    रास्ता सरल है :-
    सबसे पहले साइन इन करें, फिर सीधे (राईट) हाथ पर ऊपर कौने में डिजाइन पर क्लिक करें. फिर सेटिंग पर क्लिक करें. इसके बाद नीचे की लाइन में कमेंट्स पर क्लिक करें. अब नीचे जाकर देखें :
    Show word verification for comments? Yes NO
    अब इसमें नो पर क्लिक कर दें.
    वर्ड वेरीफिकेशन हट गया!
    ----------------------

    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

    ReplyDelete